Gulzar poetry Lyrics|Jagah aur diary mein | Writing & Recited by Gulzar sahab | Gulzar's Namz

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Gulzar poetry Lyrics|Jagah aur diary mein | Writing & Recited by Gulzar sahab | Gulzar's Namz



Song       : Jagah Aur Diary Mein
Album    : Gulzar's Namz
Writing  : Gulzar



Poetry Lyrics

जगह नहीं और डायरी में
यह ऐश भर गयी है
भरी हुई है जल-वुझे
अधकहे ख़यालों की राखो-बु से
ख़याल पूरी तरह से
जो के जले नहीं थे
मसल दिया 
या दबा दिया या
बुझे नहीं वो
कुछ उनके दुर्रे पड़े हुऐ हैं
वह एक-दो कश हो ले के 
कुछ मिसरे रह गए ये
कुछ ऐसी नज़्मे
जो तोड़ कर फेंक दो थीं इसमें
धुआं न निकले
कुछ ऐसे अशआर
जो मेरे ब्रांड के नहीं थे
वो एक ही कश में खांसकर
ऐश ट्रे में
घिस के बुझा दिए थे
इस ऐशट्रे में
ब्लेड से काटी
रात की नब्ज़ से टपकते
सियाह कतरे बुझे हुए हैं
छिले हुए चाँद की तराशें
जो रात भर छील-छील कर
फेंकता रहा हूं
गढ़ी हुई
पेन्सिलों के छिलके
खयाल की शिद्दतों से
जो दूटतो रहो हैं
इस ऐशट्रे में
हैं तोलियाँ कुछ कटे हुए
नामों, नंबरों की
जलाई थी चंद
नज़्में जिनसे
धुआँ अभी तक
दियासलाई से झड रहा है
उलट- पुलट के तमाम
सफ़्हों में झाँकता हुँ
कहों कोई तुर्रा नज़्म का
बच गया हो तो
उसका कश लगा लूं
तलब लगी है
तलब लगी है
यह ऐश ट्रे पूरी भर गयी है


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